महंगाई हर दिन की खरीदारी में दाम बढ़ने का नाम है। पेट्रोल-डीजल, राशन, सब्ज़ियाँ या बिजली बिल — जब कीमतें लगातार ऊपर जाती हैं तो पैसे की ताकत कम हो जाती है। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, आपकी जेब और रोज़मर्रा की योजनाओं पर सीधा असर डालता है।
सरकार और आर्थिक संस्थान महंगाई को CPI (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स) और WPI (होलसेल प्राइस इंडेक्स) से मापते हैं। CPI घरों की रोजमर्रा की खपत को दर्शाता है — जैसे खाना, कपड़े, किराया, स्वास्थ्य और शिक्षा। WPI फैक्ट्री और थोक स्तर पर कीमतों में बदलाव दिखाता है। यदि CPI बढ़ता है तो आम घरों के लिए चीजें महंगी होना महसूस होता है।
कहां से आती है महंगाई? कभी-कभी मांग ज़्यादा बढ़ जाती है और सप्लाई कम रहती है — इससे दाम बढ़ते हैं। तेल या अनाज की कीमतों में वैश्विक उछाल भी घरेलू महंगाई बढ़ा देता है। मुद्रा स्फीति (रुपए की क़ीमत) कमजोर पड़े तो इम्पोर्टेड चीजों के दाम बढ़ते हैं। और कभी-कभी सरकार की कर/नीतियों या टैक्स बदलाव का प्रभाव भी दिखाई देता है।
महंगाई से सबसे पहले हर घर का बजट प्रभावित होता है। बचत कम होती है, निवेश पर रिटर्न कम महसूस होता है और किस्म-किस्म के खर्चों में कटौती करनी पड़ती है। तो क्या करें? कुछ आसान और सीधे कदम मदद कर सकते हैं:
नियामक और सरकारी कदम भी मायने रखते हैं। रिज़र्व बैंक दर में बदलाव करके महंगाई से निपटता है—ब्याज दर बढ़ाने से मांग धीमी हो सकती है। बजट और सब्सिडी पॉलिसी से भी महंगाई पर असर पड़ता है। इसलिए आर्थिक खबरें और सरकारी घोषणाओं पर ध्यान रखें।
अंत में, महंगाई हमेशा बनी रहती है पर उससे निबटना संभव है। छोटे-छोटे वित्तीय फैसले और समझदारी भरा खर्च आपको महंगाई की चक्की में फंसने से बचा सकता है। अगर चाहें तो अपने खर्चों की सूची भेजें — मैं आपके लिए आसान बचत प्लान सुझा सकता/सकती हूँ।
Posted By Krishna Prasanth पर 7 जून 2025 टिप्पणि (20)
भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर ग्रोथ को मजबूत धक्का दिया है। महंगाई के छह साल के निचले स्तर पर आने के बाद ये फैसला लिया गया। होम लोन लेने वालों की EMI में बड़ी राहत मिलेगी। आगे और कटौतियों के आसार हैं, मगर सतर्कता भी बनी हुई है।
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