जब राजनीति और जनता के बीच भावनाएँ तेज़ हो जाती हैं, तो वो बन जाता है चुनावी तनाव, एक ऐसी राजनीतिक स्थिति जिसमें विभिन्न पार्टियों, नेताओं और समूहों के बीच भावनात्मक और आमने-सामने की लड़ाई छिड़ जाती है। ये तनाव सिर्फ चुनावी मौकों पर ही नहीं, बल्कि जब कोई बड़ा मुद्दा उठता है—जैसे भारत-पाकिस्तान तनाव, यूएनजीए में विवाद, या खेल में राष्ट्रीय गर्व का सवाल—तब भी बढ़ जाता है। इसकी जड़ें सिर्फ वोट नहीं, बल्कि पहचान, अहंकार और भरोसे की लड़ाई में हैं।
आज के दौर में, भारत-पाकिस्तान तनाव, दो देशों के बीच लंबे समय से चल रहा राजनीतिक और सैन्य विवाद क्रिकेट मैचों के दौरान भी बरकरार रहता है। जब नश्रा संधु ने सिक्स-फिंगर जेस्चर किया, तो ये एक खेल की बात नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय भावना का सवाल बन गया। इसी तरह, Petal Gahlot, भारत की यूएन राजनयिक जिन्होंने यूएनजीए में पाकिस्तान को आतंकवाद का सहारा बताया ने राजनयिक मंच पर चुनावी तनाव को नए आयाम दिए। ये सब एक ही ताने पर बुने गए हैं: राष्ट्रीय गर्व, राजनीतिक लाभ और जनता के भावनात्मक जुड़ाव का खेल।
चुनावी तनाव सिर्फ राजनेताओं का मामला नहीं। ये एक आम आदमी के घर तक पहुँच जाता है। जब एक टीम जीतती है, तो लोग खुश होते हैं। जब एक नेता टीका लगाता है, तो लोग उसके खिलाफ या उसके साथ खड़े हो जाते हैं। ये तनाव नए आईपीओ, टैक्स डेडलाइन, या भ्रष्टाचार के मामलों में भी दिखता है—जैसे MP लोकेयुक्ता रैड में सौरभ शर्मा की ठगी उजागर होने पर मुख्यमंत्री ने चेकपॉस्ट बंद कर दिए। ये सब एक ही गति से चलता है: जनता के भावनात्मक रिएक्शन की।
इस पेज पर आपको ऐसे ही कई मामले मिलेंगे जहाँ खेल, राजनयिक वार्ताएँ, आर्थिक फैसले और राजनीति एक साथ टकराए हैं। आप देखेंगे कि कैसे एक जेस्चर, एक भाषण या एक टीम की जीत देश के राजनीतिक तापमान को बदल सकती है। ये सब नहीं बस खबरें हैं—ये चुनावी तनाव के असली रूप हैं।
Posted By Krishna Prasanth पर 4 नव॰ 2025 टिप्पणि (18)
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