के द्वारा प्रकाशित किया गया Krishna Prasanth    पर 23 अग॰ 2025    टिप्पणि (10)

टैरिफ पॉज़ से वॉल स्ट्रीट में ऐतिहासिक रैली, एशियाई बाजारों में भी जोरदार उछाल

सिर्फ 90 दिन की मोहलत, और बाजार ने इतिहास रच दिया

सात दिन पहले तक माहौल घबराहट का था, और फिर एक रात—90 दिन की टैरिफ पॉज़—ने तस्वीर पलट दी। 9 अप्रैल 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ज्यादातर व्यापार भागीदारों पर लगने वाले पारस्परिक टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया। चीन को छोड़कर। चीन के लिए टैरिफ 125% कर दिए गए—बीजिंग की ओर से अमेरिकी आयात पर 84% टैरिफ बढ़ाने के जवाब में। नतीजा: वॉल स्ट्रीट ने 2008 के बाद की सबसे बड़ी एक-दिवसीय छलांग देखी।

S&P 500 में 9.52% की उछाल आई—यह 2008 वित्तीय संकट के बाद का सबसे बड़ा एक-दिवसीय लाभ है। डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 7.87% यानी करीब 3,000 अंक उछला, जो मार्च 2020 के बाद सबसे बड़ा है। टेक-हैवी नैस्डैक कंपोजिट 12.16% चढ़ा—जनवरी 2001 के बाद सबसे मजबूत और अपने इतिहास का दूसरा सबसे अच्छा दिन। निवेशकों ने जिस तेज गिरावट को ‘लिबरेशन डे’ शॉक मान लिया था, वह एक फैसले से पलट गई।

एशिया ने भी राहत की सांस ली। जापान का निक्केई 225, हांगकांग का हैंग सेंग और शंघाई कंपोजिट—तीनों में दो अंकों यानी 10% से ज्यादा की बढ़त दर्ज हुई। संदेश साफ था: अगर व्यापक टैरिफ जंग टल जाए तो वैश्विक जोखिम उठाने की भूख लौट आती है।

यह यू-टर्न एक हफ्ते पुरानी कट्टर लाइन से बिल्कुल अलग था। 2 अप्रैल को ‘लिबरेशन डे’ भाषण में ट्रंप ने व्यापार घाटे के आधार पर व्यापक पारस्परिक टैरिफ का बिगुल बजाया था। उसी दिन S&P 500 और नैस्डैक ने महामारी-युग के बाद सबसे खराब गिरावट झेली। JPMorgan ने चेतावनी दी थी कि टैरिफ पूरी तरह लागू हुए तो अर्थव्यवस्था मंदी की ओर धकेली जा सकती है।

वॉल स्ट्रीट में इस उतार-चढ़ाव की मनोविज्ञान को फाइनेंशियल टाइम्स के कॉलमनिस्ट रॉबर्ट आर्मस्ट्रांग ने ‘TACO ट्रेड’—Trump Always Chickens Out—कहा। मतलब, कड़ा ऐलान, फिर पीछे हटना। 90 दिन की पॉज़ ने इस धारणा को आंशिक बल दिया—हालांकि चीन पर टैरिफ बढ़ाना एक अलग मोर्चे पर अनिश्चितता लेकर आया।

इस राहत का फायदा सबसे पहले संवेदनशील सेक्टरों तक पहुंचा। डेल्टा एयर लाइंस (DAL) 23.4% उछल गई। कंपनी ने कुछ दिन पहले ही फुल-ईयर गाइडेंस वापस ले लिया था। CEO एड बास्टियन बोल चुके थे—अनिश्चित माहौल में वृद्धि थम गई है और अभी ‘अपडेटेड आउटलुक देना जल्दबाजी होगी।’ फिर भी उन्होंने भरोसा जताया कि साल में अच्छी लाभप्रदता और फ्री कैश फ्लो संभव है। बाजार ने उसी भरोसे को कीमतों में टटोल लिया।

दो दिन बाद, 11 अप्रैल को, सरकार ने एक और राहत दी—उच्च मांग वाले टेक डिवाइस जैसे स्मार्टफोन, कंप्यूटर, सोलर सेल और फ्लैट पैनल टीवी डिस्प्ले को अस्थायी रूप से पारस्परिक टैरिफ से छूट मिली। चीन ने भी जवाब में करीब 40 अरब डॉलर के अमेरिकी निर्यात को छूट दी, जिन्हें दूसरे सप्लायर से तुरंत बदला नहीं जा सकता। यह ‘दे-ले’ का टेम्पररी फॉर्मूला था—कठोर बयानों के बीच राहत के छोटे पुल।

रेट मार्केट ने इस रैली को सावधानी से देखा। 10-वर्षीय ट्रेजरी यील्ड 11 अप्रैल को 4.6% के आसपास टिकी रही। Politico के विश्लेषण ने याद दिलाया—पॉज़ के बावजूद औसत प्रभावी अमेरिकी टैरिफ दर सदी के उच्चतम स्तरों के पास है, क्योंकि पुराने टैरिफ अभी भी लगे हैं। यानी रेशमी दस्ताने में लोहे की मुट्ठी—सॉफ्ट दिखने वाली राहत के पीछे कठोर वास्तविकता।

रैली टिकाऊ रही। 2 मई तक S&P 500 ने 2 अप्रैल की गिरावट पूरी पाट दी और ‘लिबरेशन डे’ से पहले के स्तर से ऊपर बंद हुआ—नौ सत्रों की लगातार बढ़त के बाद। 12 मई को अमेरिका और चीन ने 90 दिन के लिए अस्थायी समझौता किया—चीनी सामानों पर 30% और अमेरिकी सामानों पर न्यूनतम 10% टैरिफ। 13 मई को S&P 500 साल-भर के हिसाब से पॉजिटिव हो गया और 27 जून 2025 को 6,173.07 पर बंद होकर फरवरी 19 के हाई को पार कर गया।

टैरिफ की पॉलिटिक्स, बाजार की इकोनॉमिक्स: आगे क्या?

टैरिफ की पॉलिटिक्स, बाजार की इकोनॉमिक्स: आगे क्या?

यह शृंखला सिर्फ शॉर्ट-टर्म ट्रेड नहीं है; यह नीति और बाजार के रिश्ते का रीयल-टाइम केस स्टडी है। पॉज़ ने कंपनियों और निवेशकों को वक्त दिया—ऑर्डर बुक, इन्वेंट्री और सप्लाई चेन एडजस्ट करने का। चीन पर बढ़े टैरिफ ने दूसरी तरफ दबाव कायम रखा—नेगोशिएशन टेबल पर लीवरेज बनाने के लिए। यानी एक साथ ब्रेक और एक्सीलेरेटर—और ड्राइवर से उम्मीद कि कार सीधी चले।

सवाल यह है कि 90 दिन की यह मोहलत किसके लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है। टेक में स्पेशल छूट से उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर वैल्यू-चेन को सांस मिली। एयरलाइंस, रिटेल, ऑटो, सौर ऊर्जा और इंडस्ट्रियल्स जैसे सेक्टर, जो इनपुट लागत और क्रॉस-बॉर्डर डिमांड पर निर्भर हैं, शॉर्ट-टर्म में राहत महसूस करते हैं। वहीं, चीन-एक्सपोजर वाली कंपनियों के लिए अनिश्चितता बनी रहती है—क्योंकि 125% टैरिफ लागत संरचना और मार्जिन पर सीधा असर डालते हैं।

बॉन्ड यील्ड का 4.6% के आसपास टिके रहना एक अहम संकेत है। इक्विटी ने राहत को जश्न की तरह लिया, पर फिक्स्ड इनकम अब भी मान रही है कि महंगाई और नीति-जोखिम पूरी तरह खत्म नहीं हुए। औसत प्रभावी टैरिफ हाई रहने का मतलब है कि इनपुट कीमतें नीचे आने में समय लगेगा। कॉरपोरेट CFO इसका जवाब अक्सर एक ही तरीके से देते हैं—कैपेक्स और हायरिंग पर सधी हुई रफ्तार, जब तक तस्वीर साफ न हो।

ट्रेड फ्रेमवर्क में यह भी साफ दिखा कि ‘सभी पर समान टैरिफ’ लागू करना व्यवहार में कठिन है। सप्लाई-चेन मैपिंग, एलाइड कंट्रीज़ के साथ विनिर्माण शिफ्ट, और कंज्यूमर-फेसिंग गुड्स पर राजनीतिक दबाव—इन सबने टेक डिवाइस वाली छूट संभव बनाई। नीति-निर्माता भी जानते हैं कि स्मार्टफोन महंगे होते ही घरेलू असंतोष सबसे पहले जागता है।

अब जरा टाइमलाइन को सिस्टमैटिक ढंग से देखें—क्योंकि बाजार की मेमोरी शॉर्ट होती है, पर नीति की नहीं:

  • 2 अप्रैल 2025: ‘लिबरेशन डे’—व्यापक पारस्परिक टैरिफ का ऐलान, बाजार में तेज गिरावट।
  • 9 अप्रैल: 90 दिन की पॉज़—चीन पर 125% टैरिफ—वॉल स्ट्रीट में ऐतिहासिक उछाल।
  • 11 अप्रैल: स्मार्टफोन, कंप्यूटर, सोलर सेल, फ्लैट-पैनल डिस्प्ले को अस्थायी छूट; चीन ने करीब 40 अरब डॉलर के अमेरिकी निर्यात पर राहत दी।
  • 2 मई: S&P 500 ने 2 अप्रैल की गिरावट पूरी रिवर्स की, नौ दिन की लगातार बढ़त।
  • 12 मई: यूएस-चीन 90 दिन का अस्थायी टैरिफ सौदा—चीनी सामान पर 30%, अमेरिकी पर न्यूनतम 10%।
  • 27 जून: S&P 500 6,173.07 पर—फरवरी 19 के उच्च स्तर से ऊपर, साल की गिरावट पूरी रिकवर।

एशियाई बाजारों की रैली बताती है कि ग्लोबल पोर्टफोलियो आज भी अमेरिका-चीन सूत्र से बंधे हैं। जापान और हांगकांग में दो-अंकों की छलांग इसलिए दिखती है क्योंकि ये बाजार टेक और निर्यात पर भारी निर्भर हैं—और पॉज़ ने निकट-कालीन ऑर्डर फ्लो की उम्मीद बढ़ा दी। शंघाई का उछाल भी राहत का संकेत है, मगर चीन पर बढ़े अमेरिकी टैरिफ एक साथ घरेलू नीति प्रतिक्रिया और स्टिमुलस की बहस छेड़ देते हैं।

क्या यह सब टिकेगा? तीन बातों पर नज़र रखें।

  • नीति की निरंतरता: 90 दिन बाद क्या? अगर पॉज़ बढ़ती है और चीन पर आंशिक समायोजन होता है, तो इक्विटी प्रीमियम और कम हो सकता है। उल्टा, अगर पॉज़ हटती है, तो वैल्यूएशन पर दबाव लौट सकता है।
  • कमोडिटी और महंगाई: टैरिफ हाई रहने से इनपुट कॉस्ट जल्दी नहीं गिरेंगी। अगर एनर्जी और मेटल्स मजबूत रहे, तो बॉन्ड यील्ड ऊंची बनी रहेगी—इक्विटी के लिए डिस्काउंट रेट वही बड़ा फैक्टर है।
  • कॉर्पोरेट गाइडेंस: डेल्टा जैसी कंपनियों ने ‘सावधानी’ चुनी है। अगली अर्निंग सीज़न में जो कंपनियां डिमांड-ट्रेंड और मार्जिन पर स्पष्टता देंगी, बाजार उन्हें प्रीमियम देगा—जो नहीं देंगी, उन्हें वोलैटिलिटी का बिल चुकाना होगा।

‘TACO ट्रेड’ की चर्चा मजेदार लग सकती है, पर यह असल में पॉलिसी-रिस्क प्राइसिंग का शॉर्टहैंड है। वॉल स्ट्रीट पिछले कुछ साल में यही सीख चुका है—बड़ा ऐलान आते ही पहला रिएक्शन तेज होता है; फिर कुछ दिनों में बैक-चैनल बातचीत, इंट्रेस्ट-ग्रुप लॉबिंग और प्रैक्टिकल बाधाओं के चलते नीति का किनारा गोल हो जाता है। इस बार भी वही दिखा—सख्ती की धमक, फिर छूट के दरवाजे।

लेकिन एक अंतर है। औसत प्रभावी टैरिफ बहुत ऊंचे हैं, इतिहास की तुलना में। इसलिए भले ही पॉज़ से इक्विटी में मुस्कान लौटी हो, कीमतों का दबाव सप्लाई चेन में बना रह सकता है। कंपनियां इंपोर्ट-रेरूटिंग, नियर-शोरिंग और मल्टी-सोर्सिंग जैसे कदम तेज कर रही हैं। यह महंगा है—पर जोखिम कम करता है।

निवेशक धरातल पर क्या करें? डेटा बताता है कि इस रैली की अगुवाई बड़े कैप टेक और घरेलू मांग-निर्भर नामों ने की। एयरलाइंस जैसी साइक्लिकल्स ने तेज रिकवरी दिखाई, जबकि चीन-एक्सपोजर ज्यादा होने वाले औद्योगिक नामों में चयन जरूरी है। बॉन्ड में ड्यूरेशन-रिस्क लेते वक्त 4.6% यील्ड को ‘फ्लोर’ न मानें—नीति की दिशा बदलते ही यह नंबर ऊपर-नीचे हो सकता है।

किसी भी बड़ी नीति के साथ एक नैरेटिव बनता है—और बाजार उसी पर ट्रेड करता है। ‘लिबरेशन डे’ का नैरेटिव था—कठोर, व्यापक टैरिफ, वैश्विक मांग को चोट। पॉज़ का नैरेटिव है—टकराव सीमित करो, हर तरफ थोड़ी राहत दो, बातचीत की जगह निकालो। नतीजा आप स्क्रीन पर देख चुके हैं। अब गेंद फिर नीति के पाले में है—कितनी देर तक यह राहत बरकरार रहेगी, इसी पर 2025 के बैलेंस-ऑफ-इयर रिटर्न निर्भर करेंगे।

और हां, इस पूरे एपिसोड ने एक पुरानी सीख ताजा कर दी—बाजार को अनिश्चितता पसंद नहीं, पर उसे आश्चर्य पसंद है। 90 दिन की मोहलत ने वही किया—अचानक का आश्चर्य दिया, और ट्रेडिंग डेस्क से लेकर रिटेल ऐप तक, हर जगह जोखिम लेने का बटन फिर दब गया। अब अगला सरप्राइज क्या होगा, सबकी नजर वहीं है।

10 Comments

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    Sunil Kunders

    अगस्त 23, 2025 AT 18:51

    टैरिफ पॉज़ ने वॉल‑स्ट्रीट में दुर्लभ तेज़ी से उछाल को प्रेरित किया, जो पिछले दशकों में देखी गई सबसे तीव्र सिंगल‑डे रैली में से एक है। इस आर्थिक स्फ़ूर्ति को समझने के लिए नीति‑भेद और बाजार‑भेद के अंतर को स्पष्ट रूप से पृथक करना आवश्यक है। जबकि अमेरिकी प्रशासक ने चीन को छूट नहीं दी, फिर भी वैश्विक जोखिम‑भ्रम को कम करने के लिए यह अस्थायी श्वास लेना अपरिहार्य प्रतीत होता है। एशियाई बैंकों ने भी इस मौलिक परिवर्तन को अपनी कॉर्पोरेट रणनीति में समायोजित करने के लिये तत्परता दिखाई है। अंततः, यह घटना दर्शाती है कि नीति‑झुंझट के बीच बाजार की तरलता कितनी संवेदनशील हो सकती है।

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    suraj jadhao

    अगस्त 24, 2025 AT 22:40

    वाह! 👏 इस पॉज़ ने जैसे ही बाजार में नई जान फूँकी, आज की ट्रेडिंग डेस्क पर उत्साह का लहर दौड़ गई! 🚀 सभी निवेशकों को अब थोड़े ज्यादा सकारात्मक सोच के साथ अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना चाहिए। इस गति को कायम रखने के लिए हमे नीति‑निर्माताओं की स्थिरता की भी जरूरत है। चलिए, इस ऊर्जा को आगे भी बनाये रखें! 🌟

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    Agni Gendhing

    अगस्त 26, 2025 AT 02:28

    ओह भई! ट्रम्प ने 90 दिन की मुह्लत दी और फिर भी चीन को 125% टैरिफ के साथ थप्पड़ मार दिया?!! ये तो बिल्कुल वही है जैसा कि 'गुप्त विश्व षड्यंत्र' में बताया जाता है!!! हर बार वही कहानी-उच्च पद पर बैठे लोग हमें चौंकाने के लिए बड़े-बड़े निर्णय लेते हैं, फिर पीछे हटते हैं, और हम सब बस देख रहे होते हैं!! लेकिन हाँ, मार्केट ने तो तुरंत ही साइड‑एडजस्ट कर दिया, जैसे कोई जादूगर अपनी टोपी से खरगोश निकालता है!!!

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    Gowthaman Ramasamy

    अगस्त 27, 2025 AT 06:16

    संदर्भित डेटा के अनुसार, 9 अप्रैल को S&P 500 ने 9.52 % की वृद्धि दर्ज की, जो 2008 के बाद की सबसे बड़ी दैनिक वृद्धि के बराबर है। इसी अवधि में नैस्डैक ने 12.16 % की वृद्धि की, जिसका अर्थ है कि टेक‑सेक्टर ने मुख्य रूप से इस रैलियों को प्रेरित किया। इन आँकड़ों को मापते समय, हमे ध्यान रखना चाहिए कि ट्रेजरी यील्ड अभी भी लगभग 4.6 % पर स्थिर है, जिससे फिक्स्ड‑इनकम बाजार में अभी भी मध्यम‑जोखिम मौजूद है। इस संदर्भ में, निवेशकों को अपनी एसेट अलोकेशन में इक्विटी‑हेवी और बांड‑हैवी के बीच संतुलन स्थापित करने की सलाह दी जाती है। 📈

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    Navyanandana Singh

    अगस्त 28, 2025 AT 10:05

    बाजार की धड़कन अक्सर नीति के बवंडर से उत्पन्न होती है, और इस बवंडर में हमारा आत्म‑निरीक्षण आवश्यक हो जाता है। जब ट्रम्प ने टैरिफ पॉज़ की घोषणा की, तो वह न केवल एक आर्थिक उपकरण था, बल्कि एक सामाजिक संकेत भी था-जो दर्शाता है कि मनुष्य की इच्छा और शक्ति में अनिश्चितता का स्थान है। इस अनिश्चितता के बीच निवेशक स्वयं को दो ध्रुवों में बांटते पाते हैं: जोखिम‑लेने वाले और जोखिम‑से बचने वाले। परन्तु एक सच्ची समझ यह है कि दोनों ही ध्रुव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं; उनमें अंतर केवल दृष्टिकोण है। जब एशियाई बाजारों ने दो‑अंकों की उछाल देखी, तो यह स्पष्ट हुआ कि वैश्विक आपूर्ति‑श्रृंखला में निहित नाजुकता को अस्थायी रूप से शमन किया जा सकता है। फिर भी, 125 % के टैरिफ को देखते हुए, यह अंधकार भी वहन करता है कि कुछ सेक्टरों में लागत‑आधारित दबाव पैदा होगा। इस द्वैत को समझना आवश्यक है, नहीं तो हम केवल सतह के उतार‑चढ़ाव पर फंस जाएंगे। आर्थिक इतिहास सिखाता है कि निरंतरता कभी नहीं बनती, बल्कि प्रत्येक चरण में कई विसंगतियाँ प्रकट होती हैं। इसलिए, निवेशकों को चाहिए कि वे केवल संख्याओं पर नहीं, बल्कि उन संख्याओं के पीछे के रहस्यों पर भी ध्यान दें। जैसा कि दार्शनिक कहते हैं, "ज्ञान ही शक्ति है, परन्तु विवेक शक्ति को दिशा देता है"। इस दिशा में, हमे यह देखना चाहिए कि टैरिफ नीति का परिणाम न केवल आज के ट्रेडिंग वॉल्यूम में है, बल्कि भविष्य के विनिर्माण मॉडल में भी प्रतिबिंबित होगा। कंपनियां अब मल्टी‑सोर्सिंग और निकट‑शोरिंग जैसे उपायों को तेज कर रही हैं, जो कि एक रणनीतिक परिवर्तन का संकेत है। इस परिवर्तन के मध्य, नवाचार की लहर भी बढ़ेगी, क्योंकि कंपनियां लागत‑बचत के साथ साथ प्रतिस्पर्धात्मक लाभ पाने की कोशिश करेंगी। अंततः, यह सब एक ही सवाल की ओर इशारा करता है: क्या हम इस नीति‑चक्र को स्थायी विकास की ओर मोड़ पाएंगे? मेरे विचार में, उत्तर केवल गणितीय मॉडलों में नहीं, बल्कि सामूहिक जागरूकता में निहित है। इसलिए, इस मंच पर हम सभी को आमंत्रित किया जाता है कि हम इस आर्थिक नाटक को एक साथ समझें, विश्लेषण करें, और आगे बढ़ें।

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    monisha.p Tiwari

    अगस्त 29, 2025 AT 13:53

    बिलकुल सही कहा तुमने! 🌈 टैरिफ के बाद कंपनियों की नई रणनीति देखना वाकई दिलचस्प है, और यह हमें इस बात की याद दिलाता है कि बदलाव हमेशा मिलजुल कर ही संभव होता है। हम सब को मिलकर इस आर्थिक सिम्फनी में अपना हिस्सा जोड़ना चाहिए।

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    Nathan Hosken

    अगस्त 30, 2025 AT 17:41

    आपके विचारों में उल्लेखित समग्र अभिप्राय को मैं "वित्तीय स्थिरता" की कसौटी पर परखता हूँ; विशेषकर जब हम "ट्रेड-ऑफ्स" और "कॉस्ट‑ऑफ कैपिटल" की बात करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि बहु‑आयामी जोखिम‑प्रबंधन रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में, "सप्लाई‑चेन रेजिलिएंस" को विस्तृत रूप से अनुकूलित करना, "लीक्विडिटी कवरेज रेशियो" को सुधारना और "ऑपरेटिंग मार्जिन" को स्थिर बनाए रखना, सभी प्रमुख बिंदु हैं।

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    Manali Saha

    अगस्त 31, 2025 AT 21:30

    धन्यवाद, जानकारी उपयोगी है।

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    patil sharan

    सितंबर 2, 2025 AT 01:18

    अरे वाह, क्या उत्साह है! बाजार ने तो जैसे जिम में जमे हुए एरोबिक क्लास को हिलाने के लिए एक छोटी सी धक्का लगा दी, पर असल में सब कुछ वही पुराना बख़्शीश‑टैक्स वाला ही रहता है। फिर भी, हमारे पास इतना एड्रेनालिन है कि हम सोचते हैं-शायद अगली बार सरकार हमें मुफ्त में लड्डू भी दे दे! 🙄

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    Nitin Talwar

    सितंबर 3, 2025 AT 05:06

    देश के हित में ही सब कुछ चुन्ना चाहिए, विदेशी टैरिफ के खेल में फँस कर नहीं। 🇮🇳 यदि हमें वेटरन की तरह अपने बाज़ार को बचाना है, तो हमें सख़्त कदम उठाने होंगे, नहीं तो विदेशी कंपनियां हमें शोषित करती रहेंगी! 😡

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