मामला क्या है
मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने 60 करोड़ रुपये की कथित ठगी के केस में अभिनेत्री Shilpa Shetty और उनके पति कारोबारी राज कुंद्रा के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी कर दिया है। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि दोनों की विदेश यात्राएं बार-बार होती हैं और जांच के दौरान उनका देश छोड़ना रोका जा सके।
यह केस जूहू थाने में 14 अगस्त को दर्ज हुआ। शिकायत मुंबई के कारोबारी दीपक कोठारी ने दी, जो लोटस कैपिटल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। कोठारी का आरोप है कि Best Deal TV प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ी एक लोन-कम-इन्वेस्टमेंट डील के नाम पर उनसे करीब 60.48 करोड़ रुपये लिए गए और वादों के बावजूद वापस नहीं किए गए।
शिकायत के मुताबिक कोठारी की मुलाकात राज कुंद्रा और शिल्पा शेट्टी से कॉमन फ्रेंड राजेश आर्या ने कराई थी। उस समय Best Deal TV एक ऑनलाइन शॉपिंग/रिटेल प्लेटफॉर्म था और दंपति के पास कंपनी में करीब 87.6% हिस्सेदारी बताई गई। शुरुआती बातचीत में कोठारी से निवेश के बदले हर महीने तय रिटर्न और समय पर मूलधन वापसी का आश्वासन दिया गया। बाद में, आरोप है कि टैक्स बचत के लिए इस ट्रांजैक्शन को ‘लोन’ से ‘इन्वेस्टमेंट’ में बदल दिया गया।
कोठारी का कहना है कि अप्रैल 2016 में शिल्पा शेट्टी ने लिखित निजी गारंटी देकर पैसे लौटाने और 12% वार्षिक ब्याज देने का भरोसा दिया। कुछ ही महीनों बाद शेट्टी ने कंपनी में डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया—यह बात बाद में उन्हें मालूम हुई। उन्हें यह भी पता चला कि कंपनी के खिलाफ करीब 1.28 करोड़ रुपये की इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया चल रही है, जिसकी जानकारी पहले नहीं दी गई थी।
पुलिस जांच का शुरुआती संकेत है कि कारोबार बढ़ाने के लिए मिले फंड का हिस्सा कथित तौर पर निजी खर्चों में गया। EOW ने कंपनी के ऑडिटर को पूछताछ के लिए बुलाया है और दोनों के ट्रैवल रिकॉर्ड भी खंगाले जा रहे हैं, ताकि पैसे के फ्लो और फैसलों के समय का मिलान किया जा सके।
उधर, शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने सभी आरोपों से इनकार किया है। उनका कहना है कि केस झूठा है, उनकी छवि खराब करने के लिए बनाया गया है, और वे जांच में सहयोग करेंगे।
- 2015: Best Deal TV के जरिए निवेश/लोन का प्रस्ताव और शुरुआती लेन-देन।
- अप्रैल 2016: लिखित निजी गारंटी और 12% ब्याज का आश्वासन।
- 2016 के बाद: शेट्टी का डायरेक्टर पद से इस्तीफा, कंपनी का कारोबार धीरे-धीरे ठप होना।
- बाद के साल: इनसॉल्वेंसी झगड़े की जानकारी सामने आना।
- 14 अगस्त: जूहू थाने में केस दर्ज; बड़ी रकम को देखते हुए मामला EOW को ट्रांसफर।
- अब: EOW ने LOC जारी कर जांच तेज की।
कानूनी स्थिति और आगे क्या
लुकआउट सर्कुलर का मतलब है कि संबंधित व्यक्ति बिना अनुमति देश से बाहर नहीं जा सकता। एयरपोर्ट और इमिग्रेशन पर अलर्ट लगा दिया जाता है। LOC आरोप साबित नहीं करता, पर जांच में हाज़िरी सुनिश्चित करता है। कई बार आरोपी अदालत में जाकर LOC हटवाने या यात्रा की अनुमति मांगते हैं—यह अदालत के विवेक पर होता है।
EOW अभी तीन चीजें साथ-साथ कर रही है—पहला, बैंक स्टेटमेंट, एग्रीमेंट और ईमेल/मैसेज जैसे रिकॉर्ड इकट्ठा करना; दूसरा, कंपनी के ऑडिटर और पूर्व अधिकारियों से पूछताछ; तीसरा, पैसा कहां-कहां गया, इसका ट्रेल बनाना। अगर कहीं व्यक्तिगत अकाउंट में डायवर्जन मिलता है, तो वह जांच का अहम आधार बन सकता है।
शिकायत वाले पक्ष का तर्क है कि निवेशकों को तय समय पर रिटर्न और मूलधन नहीं मिला, वादे तोड़े गए और महत्वपूर्ण सूचनाएं—जैसे इनसॉल्वेंसी—छिपाई गईं। दूसरी तरफ, आरोपित पक्ष कहता है कि कारोबारी असफलता और धोखाधड़ी अलग चीजें हैं; किसी कंपनी का बंद होना अपने आप में अपराध नहीं है। असल तस्वीर दस्तावेजों और पैसों के रास्ते से ही साफ होगी।
Best Deal TV का बैकग्राउंड भी जांच के केंद्र में है। यह सेलिब्रिटी-ड्रिवन टेलिशॉपिंग/ई-कॉमर्स मॉडल था, जो शुरू में आक्रामक तरीके से बढ़ा, फिर बाजार और कैश फ्लो की चुनौतियों में फंस गया। कई ऐसी कंपनियां विज्ञापन, लॉजिस्टिक्स और रिटर्न मैनेजमेंट की लागत में उलझती हैं। लेकिन क्या यहां निवेश के नाम पर गलत वादे हुए? यही सवाल जांच तय करेगी।
कानूनी रास्ते कई हैं। पुलिस धारा-आधारित अपराध साबित करने के लिए इंटेंट और मिसरिप्रेजेंटेशन का रिकॉर्ड तलाशेगी—यानी क्या शुरुआत से धोखा देने का इरादा था, या नुकसान बाद में हुआ। नागरिक (सिविल) विवाद और आपराधिक धोखाधड़ी की रेखा अक्सर यहीं खिंचती है। दूसरी ओर, दोनों पक्ष चाहें तो कोर्ट- मॉनिटरड सेटलमेंट की कोशिश भी कर सकते हैं, पर आपराधिक प्रक्रिया तब भी बंद नहीं होती जब तक अदालत संतुष्ट न हो।
अगले चरण में EOW नोटिस देकर बयान दर्ज कर सकती है। जरूरत पड़ने पर फॉरेंसिक ऑडिट, मोबाइल/लैपटॉप इमेजिंग और तृतीय पक्ष—बैंकर, कंसल्टेंट, सप्लायर—की गवाही भी जुटाई जाएगी। अगर सहयोग नहीं मिलता या सबूतों के साथ छेड़छाड़ का डर दिखता है, तब गिरफ्तारी जैसी कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
फिलहाल, LOC से यह साफ है कि एजेंसी जांच को समयबद्ध रखना चाहती है। आरोपित दंपति का रुख है कि वे बेगुनाह हैं। फैसला कागज़ों और लेन-देन के ट्रेल पर होगा—कौन-सा वादा किस दस्तावेज में है, किस तारीख को पैसा कहां गया, और उस समय कंपनी की वित्तीय हालत क्या थी। यह केस सिर्फ बड़ी रकम का नहीं, भरोसे और पारदर्शिता की परीक्षा भी है।

jitha veera
सितंबर 6, 2025 AT 18:45सभी को लगता है कि यह केस सिर्फ हाई-प्रोफ़ाइल सेलेब्रिटी पर हिट है, लेकिन असली बात तो यह है कि वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में अक्सर वही लोग फस जाते हैं जो बड़े सपने देखते हैं। इस केस में 60 करोड़ की ठगी का दायरा दिखाता है कि बीजनेस मॉडल में छुपे हुए जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पुलिस ने लोकेटआउट जारी किया है, इसलिए अब राज कुंद्रा और शिल्पा को विदेश यात्रा पर रोक लगेगी।
Anushka Madan
सितंबर 17, 2025 AT 13:57ऐसे धोखेबाजों को सभ्य समाज में कोई जगह नहीं।
nayan lad
सितंबर 28, 2025 AT 09:09यदि आप निवेशकों को सही समय पर रिटर्न नहीं मिला, तो यह स्पष्ट उल्लंघन है। ईओडब्ल्यू का दस्तावेज़ीकरण और ट्रेस करने का काम केस को स्पष्ट दिशा देगा।
Govind Reddy
अक्तूबर 9, 2025 AT 04:21व्यापार की दुनिया में विश्वास और पारदर्शिता दो स्तंभ होते हैं, जिनमें से एक क्षयित हो जाता है तो सम्पूर्ण इमारत झुक जाती है। यहाँ शिल्पा और राज की भागीदारी केवल प्रबंधन नहीं, बल्कि वित्तीय रणनीति की दिशा भी निर्धारित करती थी। अगर फंड का बहाव निजी खर्च में जा रहा है, तो यह न केवल कानूनन बल्कि नैतिक स्तर पर भी प्रश्न उठाता है। इस प्रकार के मामलों में कानूनी प्रक्रिया ही एकलौता मार्ग है जो सच्चाई को उजागर कर सकता है।
KRS R
अक्तूबर 19, 2025 AT 23:33देखो, हर बड़े नाम के पीछे एक मोटी कमाई की चाह होती है, लेकिन जब वो चाह दूसरों को नुकसान पहुँचाती है तो गली में आवाज़ उठती है। ईओडब्ल्यू ने वास्तव में तेज़ कार्रवाई की है, लेकिन सवाल यही है कि क्या यह केवल एक सतही कार्रवाई है या गहरी जाँच का संकेत है। अगर निवेशकों ने अपना पैसा सही जगह नहीं लगा पाया, तो यह पूरे इकोसिस्टम को हिला सकता है।
Uday Kiran Maloth
अक्तूबर 30, 2025 AT 18:45Legal standpoint से देखें तो लुकआउट सर्कुलर (LOC) का जारी होना यह निर्दिष्ट करता है कि संबंधित व्यक्तियों को बिना मान्यतानुसार अंतर्राष्ट्रीय यात्रा से प्रतिबंधित किया गया है। इस कार्रवाई का मुख्य उद्देश्य अभियोजन प्रक्रिया में संभावित टेम्परेरी एस्केप को रोकना है, जिससे सबूत एवं दस्तावेज़ी साक्ष्य की अखंडता बनी रहे। आगे की फ़ॉरेंसिक ऑडिट एवं बैक-ट्रैकिंग में वित्तीय लेन-देन की ट्रेसेबिलिटी अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। अंततः, न्यायालयीय समीक्षा के बाद ही इस LOC को निरस्त या कायम किया जाएगा।
Deepak Rajbhar
नवंबर 10, 2025 AT 13:57ओह माय गॉड, 60 करोड़ का मामला और फिर भी हम सब अभी भी शिल्पा की फ़ैशन लाइन्स की बातें कर रहे हैं! 😂 ऐसा लगता है जैसे बॉलीवुड की हर स्क्रिप्ट में एक ही प्लॉट है – बड़ा धंधा, बड़ा दावे, और फिर कड़ी पुलिस कार्रवाई। लेकिन सच में, अगर यह सब एक बड़े व्यापारिक फ़ैसले का हिस्सा था तो क्या हमें इसे सिर्फ़ एक 'सेलेब्रिटी केस' कह कर खींच लेना चाहिए? 🤔 ईओडब्ल्यू की तेज़ गति वाली जांच इस बात का प्रमाण है कि कई लोग अब स्टार पावर से बच नहीं सकते। अंत में, न्याय की तलवार तभी टिकेगी जब सबूत बोर्ड पर स्पष्ट रूप से दिखें।
Hitesh Engg.
नवंबर 21, 2025 AT 09:09मैं इस पूरे मामले को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखता हूँ जिसमें सिर्फ़ एक दो पक्षों की आलोचना नहीं, बल्कि प्रणालीगत समस्याएँ भी शामिल हैं। सबसे पहले, निवेशकों को निवेश योजना के क्लियर टर्म्स और रिस्क प्रॉफ़ाइल को समझना चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे बड़े‑वित्तीय नुकसान से बचा जा सके। दूसरा, कंपनियों को अपने फाइनेंशियल डिस्क्लोज़र में पारदर्शी रहना चाहिए, खासकर जब वे सार्वजनिक रूप से अपनी भागीदारी का दावा करती हैं। तीसरा, नियामक संस्थाएँ जैसे कि SEBI को ऐसी हाई‑प्रोफ़ाइल केसों में प्रैक्टिकल गाइडलाइन प्रदान करनी चाहिए, ताकि निवेशकों के हित सुरक्षित रहें। चौथा, इस केस में यह स्पष्ट है कि कुछ दस्तावेज़ी प्रमाणों की अनुपस्थिति ने जांच को कठिन बना दिया, इसलिए डिजिटलीस्ड रिकॉर्ड‑कीपिंग अनिवार्य होनी चाहिए। पाँचवा, अगर फंड का उपयोग निजी खर्च में हो रहा है, तो यह न केवल आयरनिकल है बल्कि नैतिक रूप से भी अस्वीकार्य है। छठा, लोकेटआउट सर्कुलर ने दिखाया कि कानूनी प्रणाली में समय पर प्रतिक्रिया देना कितना अहम है, ताकि किसी भी संभावित फरारी को रोक सके। अंततः, यदि सभी पक्ष मिलकर पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को अपनाएँ तो इस प्रकार के केस दोहराने की संभावना काफी कम हो जाएगी।
Zubita John
दिसंबर 2, 2025 AT 04:21भाई लोग, इस केस में अगर फंड सही ट्रैक पर नहीं गया तो ये बहुत बड़ी गलती है, क्यूँकि निवेशकों का भरोसा टूट जाता है। हमें ऐसे केसों से सीख लेनी चाहिए कि फाइनेंशियल डिस्क्लोज़र में सच्चाई और स्पष्टीकरण जरूरी है। सही वर्कफ़्लो और ऑडिट के बिना कोई भी बिज़नेस टिक नहीं सकता।