के द्वारा प्रकाशित किया गया Krishna Prasanth    पर 6 सित॰ 2025    टिप्पणि (0)

Shilpa Shetty–Raj Kundra पर 60 करोड़ ठगी केस: मुंबई पुलिस ने लुकआउट सर्कुलर जारी

मामला क्या है

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने 60 करोड़ रुपये की कथित ठगी के केस में अभिनेत्री Shilpa Shetty और उनके पति कारोबारी राज कुंद्रा के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी कर दिया है। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि दोनों की विदेश यात्राएं बार-बार होती हैं और जांच के दौरान उनका देश छोड़ना रोका जा सके।

यह केस जूहू थाने में 14 अगस्त को दर्ज हुआ। शिकायत मुंबई के कारोबारी दीपक कोठारी ने दी, जो लोटस कैपिटल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। कोठारी का आरोप है कि Best Deal TV प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ी एक लोन-कम-इन्वेस्टमेंट डील के नाम पर उनसे करीब 60.48 करोड़ रुपये लिए गए और वादों के बावजूद वापस नहीं किए गए।

शिकायत के मुताबिक कोठारी की मुलाकात राज कुंद्रा और शिल्पा शेट्टी से कॉमन फ्रेंड राजेश आर्या ने कराई थी। उस समय Best Deal TV एक ऑनलाइन शॉपिंग/रिटेल प्लेटफॉर्म था और दंपति के पास कंपनी में करीब 87.6% हिस्सेदारी बताई गई। शुरुआती बातचीत में कोठारी से निवेश के बदले हर महीने तय रिटर्न और समय पर मूलधन वापसी का आश्वासन दिया गया। बाद में, आरोप है कि टैक्स बचत के लिए इस ट्रांजैक्शन को ‘लोन’ से ‘इन्वेस्टमेंट’ में बदल दिया गया।

कोठारी का कहना है कि अप्रैल 2016 में शिल्पा शेट्टी ने लिखित निजी गारंटी देकर पैसे लौटाने और 12% वार्षिक ब्याज देने का भरोसा दिया। कुछ ही महीनों बाद शेट्टी ने कंपनी में डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया—यह बात बाद में उन्हें मालूम हुई। उन्हें यह भी पता चला कि कंपनी के खिलाफ करीब 1.28 करोड़ रुपये की इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया चल रही है, जिसकी जानकारी पहले नहीं दी गई थी।

पुलिस जांच का शुरुआती संकेत है कि कारोबार बढ़ाने के लिए मिले फंड का हिस्सा कथित तौर पर निजी खर्चों में गया। EOW ने कंपनी के ऑडिटर को पूछताछ के लिए बुलाया है और दोनों के ट्रैवल रिकॉर्ड भी खंगाले जा रहे हैं, ताकि पैसे के फ्लो और फैसलों के समय का मिलान किया जा सके।

उधर, शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने सभी आरोपों से इनकार किया है। उनका कहना है कि केस झूठा है, उनकी छवि खराब करने के लिए बनाया गया है, और वे जांच में सहयोग करेंगे।

  • 2015: Best Deal TV के जरिए निवेश/लोन का प्रस्ताव और शुरुआती लेन-देन।
  • अप्रैल 2016: लिखित निजी गारंटी और 12% ब्याज का आश्वासन।
  • 2016 के बाद: शेट्टी का डायरेक्टर पद से इस्तीफा, कंपनी का कारोबार धीरे-धीरे ठप होना।
  • बाद के साल: इनसॉल्वेंसी झगड़े की जानकारी सामने आना।
  • 14 अगस्त: जूहू थाने में केस दर्ज; बड़ी रकम को देखते हुए मामला EOW को ट्रांसफर।
  • अब: EOW ने LOC जारी कर जांच तेज की।

कानूनी स्थिति और आगे क्या

लुकआउट सर्कुलर का मतलब है कि संबंधित व्यक्ति बिना अनुमति देश से बाहर नहीं जा सकता। एयरपोर्ट और इमिग्रेशन पर अलर्ट लगा दिया जाता है। LOC आरोप साबित नहीं करता, पर जांच में हाज़िरी सुनिश्चित करता है। कई बार आरोपी अदालत में जाकर LOC हटवाने या यात्रा की अनुमति मांगते हैं—यह अदालत के विवेक पर होता है।

EOW अभी तीन चीजें साथ-साथ कर रही है—पहला, बैंक स्टेटमेंट, एग्रीमेंट और ईमेल/मैसेज जैसे रिकॉर्ड इकट्ठा करना; दूसरा, कंपनी के ऑडिटर और पूर्व अधिकारियों से पूछताछ; तीसरा, पैसा कहां-कहां गया, इसका ट्रेल बनाना। अगर कहीं व्यक्तिगत अकाउंट में डायवर्जन मिलता है, तो वह जांच का अहम आधार बन सकता है।

शिकायत वाले पक्ष का तर्क है कि निवेशकों को तय समय पर रिटर्न और मूलधन नहीं मिला, वादे तोड़े गए और महत्वपूर्ण सूचनाएं—जैसे इनसॉल्वेंसी—छिपाई गईं। दूसरी तरफ, आरोपित पक्ष कहता है कि कारोबारी असफलता और धोखाधड़ी अलग चीजें हैं; किसी कंपनी का बंद होना अपने आप में अपराध नहीं है। असल तस्वीर दस्तावेजों और पैसों के रास्ते से ही साफ होगी।

Best Deal TV का बैकग्राउंड भी जांच के केंद्र में है। यह सेलिब्रिटी-ड्रिवन टेलिशॉपिंग/ई-कॉमर्स मॉडल था, जो शुरू में आक्रामक तरीके से बढ़ा, फिर बाजार और कैश फ्लो की चुनौतियों में फंस गया। कई ऐसी कंपनियां विज्ञापन, लॉजिस्टिक्स और रिटर्न मैनेजमेंट की लागत में उलझती हैं। लेकिन क्या यहां निवेश के नाम पर गलत वादे हुए? यही सवाल जांच तय करेगी।

कानूनी रास्ते कई हैं। पुलिस धारा-आधारित अपराध साबित करने के लिए इंटेंट और मिसरिप्रेजेंटेशन का रिकॉर्ड तलाशेगी—यानी क्या शुरुआत से धोखा देने का इरादा था, या नुकसान बाद में हुआ। नागरिक (सिविल) विवाद और आपराधिक धोखाधड़ी की रेखा अक्सर यहीं खिंचती है। दूसरी ओर, दोनों पक्ष चाहें तो कोर्ट- मॉनिटरड सेटलमेंट की कोशिश भी कर सकते हैं, पर आपराधिक प्रक्रिया तब भी बंद नहीं होती जब तक अदालत संतुष्ट न हो।

अगले चरण में EOW नोटिस देकर बयान दर्ज कर सकती है। जरूरत पड़ने पर फॉरेंसिक ऑडिट, मोबाइल/लैपटॉप इमेजिंग और तृतीय पक्ष—बैंकर, कंसल्टेंट, सप्लायर—की गवाही भी जुटाई जाएगी। अगर सहयोग नहीं मिलता या सबूतों के साथ छेड़छाड़ का डर दिखता है, तब गिरफ्तारी जैसी कड़ी कार्रवाई हो सकती है।

फिलहाल, LOC से यह साफ है कि एजेंसी जांच को समयबद्ध रखना चाहती है। आरोपित दंपति का रुख है कि वे बेगुनाह हैं। फैसला कागज़ों और लेन-देन के ट्रेल पर होगा—कौन-सा वादा किस दस्तावेज में है, किस तारीख को पैसा कहां गया, और उस समय कंपनी की वित्तीय हालत क्या थी। यह केस सिर्फ बड़ी रकम का नहीं, भरोसे और पारदर्शिता की परीक्षा भी है।