के द्वारा प्रकाशित किया गया Krishna Prasanth पर 27 सित॰ 2025 टिप्पणि (0)

खड़गे ने मनमोहन सिंह के योगदान को कैसे बताया
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकरजुन खड़गे ने Dr. मनमोहन सिंह के निधन पर एक भावुक श्रद्धांजलि में कहा कि उनका आर्थिक सिद्धांत भारत को ‘नयी दिशा’ में ले गया। उन्होंने कहा, “उनके सिद्धांत ने लाखों लोगों को गरीबी की जंजीरों से मुक्त किया और भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाया।” खड़गे ने यह भी बताया कि सिंह जी ने 1991 के वित्तीय जोख़िम को बदल कर, भारत को ‘हिंदु विकास दर’ की सीमाओं से बाहर निकाल दिया।
उन्हें अक्सर ‘आर्थिक उदारता के शिल्पकार’ कहा जाता है, पर खड़गे ने स्पष्ट किया कि यह केवल आंकड़ों का खेल नहीं था; यह भारत की भविष्य की आशा को साकार करने वाला एक सामाजिक‑आर्थिक परिवर्तन था।

1991 के आर्थिक सुधारों का विस्तार और उनका असर
1991 के शॉर्ट‑टर्म बैलेन्स‑ऑफ़‑पेमेंट्स संकट में देश के विदेशी मुद्रा भंडार केवल कुछ हफ्तों की आयात लागत को कवर कर पाते थे। इस कठिनाई के सामने, वित्त मंत्री के पद पर रहकर मनमोहन सिंह ने कई क्रांतिकारी कदम उठाए। सबसे पहले, आयात शुल्क को 150% की ऊँची सीमा से घटाकर मार्जिनल स्तर पर लाया, जिससे विदेशी सामान की कीमतें कम हुईं और स्थानीय उद्योग को नई कच्ची सामग्री मिली।
अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए खुले द्वार खोले; FDI को 1992‑96 में 2% से बढ़ाकर 15% की सीमा तक कर दिया गया। इसके अलावा, सरकारी नियंत्रण में रहे कई उद्योगों – दूरसंचार, तेल, वाणिज्य – को डीरिगुलेट किया गया, जिससे निजी कंपनीयों को बाजार में प्रवेश मिला और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिला।
सबसे उल्लेखनीय कदम था रुपया का 19% मूल्यह्रास। डॉलर के मुकाबले इस डिप्रिसिएशन ने निर्यात को प्रोत्साहित किया, जिससे भारतीय वस्तुओं की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में घट गई। इस नीति ने निर्यात राजस्व को तीन गुना कर दिया और विदेशी मुद्रा भंडार को फिर से स्थिर किया।
कर सुधार भी इस दौर का अहम हिस्सा था। कर आधार को विस्तृत किया, जटिल टैक्स स्लैब को सरल बनाया, और राजस्व संग्रह में सुधार हुआ। इन सभी मुद्दों ने बजट घाटे को घटाते हुए, आर्थिक स्थिरता को बनाये रखा।
इन सुधारों के बाद, भारत की जीडीपी वार्षिक लगभग 8% की दर से बढ़ी। 1990 में जीडीपी में निर्यात‑आयात केवल 7% थे, पर 2005 तक यह अनुपात लगभग 20% तक पहुंच गया। यह सांख्यिकीय बदलाव यह दर्शाता है कि भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी जगह मजबूत कर ली। एक अध्ययन के अनुसार, 2001 में भारत का प्रति व्यक्ति जीडीपी उन परिस्थितियों से 25% अधिक था, जहाँ 1991 का सुधार नहीं हुआ होता।
आर्थिक परिवर्तन सिर्फ आँकड़ों में नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में भी दिखा। गरीबी दर में उल्लेखनीय गिरावट आई, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा हुए, और शहरी मध्यम वर्ग का विस्तार हुआ। टाटा, इन्फोसिस, एशियन पेंट्स जैसी कंपनियों ने निर्यात‑उन्मुख मॉडल अपनाया, जिससे भारतीय ब्रांड्स को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
सिंगह जी का शैक्षणिक पृष्ठभूमि भी उनके निर्णयों में झलकता है – कैम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड से डिग्री, RBI के गवर्नर का अनुभव – जिसने उन्हें जटिल आर्थिक जटिलताओं को समझने और सटीक कदम उठाने की क्षमता दी। उनके योगदान को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं, जैसे पद्म विभूषण और जापान का ‘ग्रैंड कॉर्डन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द पॉलॉवेनिया फ्लावर्स’।
खड़गे ने यह भी कहा कि मनमोहन सिंह की नीतियों ने न सिर्फ आर्थिक परिदृश्य बदला, बल्कि भारत को एक जिम्मेदार अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाय। उन्होंने कहा, “आज भारत की बात होते ही लोग ‘आर्थिक शक्ति’ की बात करते हैं, यह सब उनके दूरदर्शी सोच का परिणाम है।”
सिंगह जी की विदेश नीति में भी आर्थिक दृष्टिकोण स्पष्ट था। ‘वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन’ में भारत के सक्रिय भागीदारी, द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों की पहल, और विकासशील देशों के साथ सहयोग ने भारत को वैश्विक मानचित्र पर एक भरोसेमंद साथी बनाया।
जब उन्होंने 2004‑2014 के दौरान प्रधानमंत्री पद संभाला, तो उनका फोकस स्थिरता, महंगाई नियंत्रण और निजी निवेश को बढ़ावा देना रहा। इस चरण में, एनएफएस (राष्ट्रीय आर्थिक योजना) के तहत ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सुधार, जल‑विद्युत परियोजनाएँ और तकनीकी शिक्षा में निवेश देखने को मिला।
आज जब नई पीढ़ी की नजरें तकनीक, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्ट‑अप इकोसिस्टम पर टिकी हैं, तो मनमोहन सिंह की दूरदर्शी नीति की छाया स्पष्ट दिखती है। उनका ‘डिजिटल इंडिया’ का शुरुआती दौर, डेटा‑ड्रिवन नीति, और नवाचार‑उन्मुख समझौते यही बताते हैं कि कैसे एक स्पष्ट आर्थिक दिशा देश के भविष्य को आकार देती है।
इस बात को समझते हुए, खड़गे ने कहा कि “हम सभी को उनके सिद्धांतों को आगे बढ़ाते रहना चाहिए, ताकि भारत की विकास यात्रा निरंतर गति में बनी रहे।”