के द्वारा प्रकाशित किया गया Vivek Bandhopadhyay पर 21 दिस॰ 2024 टिप्पणि (0)
ओम प्रकाश चौटाला: एक प्रेरक राजनीतिक कथा
हरियाणा के समयानुसार राजनीति में ओम प्रकाश चौटाला का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इस भारतीय राज्य के राजनीति के मंच पर उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनका जीवन और कार्यकाल, जिसमें उन्होंने पांच बार मुख्यमंत्री के रूप में सेवा दी, विवादों और उपलब्धियों के अद्वितीय मिश्रण के रूप में देखा जाता है। जहां उनकी राजनीतिक यात्रा कई बार विफलताओं और असफलताओं से भरी रही, वहीं उनकी दृढता और नेतृत्व के कारण वे कभी भी जनता और राजनीति से दूर नहीं हुए।
राजनीतिक परिवार में जन्म और प्रारंभिक जीवन
ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी 1935 को हरियाणा के भिवानी जिले में हुआ था। वे भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके परिवार का राजनीति में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिससे उनके ऊपर भी राजनीतिक उत्तराधिकार का भार पड़ा। हरियाणा के जननायक के रूप में माने जाने वाले चौटाला ने राजनीति में आरंभिक भूमिका अपने पिता के साथ रहकर सीखी, और उनका दृष्टिकोण जनता की सेवा के प्रति हमेशा समर्पित रहा।
मुख्यमंत्री का पहला कार्यकाल और 'मेहम कांड'
1989 में चौटाला पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, जब उनके पिता, चौधरी देवीलाल, केंद्रीय सरकार में उपप्रधानमंत्री का पदभार संभाल रहे थे। हालांकि, उनकी यह पहली मुख्यमंत्री की पदवी का कार्यकाल अत्यंत विवादास्पद साबित हुआ। 'मेहम कांड' के कारण यह कार्यकाल बहुत जल्दी समाप्त हो गया।
मेहम विधानसभा उपचुनाव 1990 में होने वाले थे। इस चुनाव में हिंसा फैलने के कारण यह सभी का ध्यान केंद्रित करने वाली घटना बन गई। लोगों ने आरोप लगाया कि चौटाला चुनावी धांधली में जुड़कर जीत हासिल करना चाहते थे, जिसके कारण चुनाव के आयोजन में कई बार देरी हुई। हिंसा और भ्रष्टाचार का यह कांड चौटाला की छवि पर गहरा प्रभाव डालता रहा।
विवादों के बीच सत्तासीन और लोकप्रिय कार्यक्रम
चौटाला ने हालांकि कई बार विवादों के बावजूद सत्ता में वापसी की। उनका सबसे दीर्घकालीन और स्थिर कार्यकाल 1999 से 2005 के बीच रहा। इस दौरान उन्होंने 'सरकार आपके द्वार' जैसी प्रभावशाली पहलों की शुरुआत की, जिसमें वे गांवों का दौरा कई नागरिकों की समस्याओं का समाधान करने पहुँचे। इससे वे जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुए।
परंतु उनके कार्यकालों को भी विवादों ने पीछा छोड़ने नहीं दिया। 2002 का 'कंडेला किसान आंदोलन', जब पुलिस फायरिंग में नौ किसानों की जान चली गई, ने उनकी छवि फिर विवाद में ला दी। चौटाला कानूनी मुसीबतों में भी घिर गए जब उन्हें और उनके बेटे अजय सिंह चौटाला को भर्ती घोटालों में दोषी ठहराया गया। 2013 में उन्हें और उनके बेटे को 10 साल की कैद की सजा दी गई। 2021 में जेल से बाहर आने के बाद उन्हें 2022 में फिर से चार साल की सजा सुनाई गई, जब उन्हें अनुपातहीन संपत्ति के मामले में दोषी पाया गया। उनके ऊपर अधिक संपत्ति रखने का आरोप था जो उनकी आधिकारिक कमाई के स्रोतों से अधिक थी। हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस सजा को उनके अपील के लंबित रहने के दौरान निलंबित कर दिया।
परिवार का विभाजन और राजनीतिक क्षति
चौटाला के परिवार में आपसी मतभेद भी उभर आए, जब 2018 में उनके बड़े बेटे अजय सिंह और उनके पौत्रों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला ने इनेलो (इंडियन नेशनल लोक दल) से अलग होकर नया राजनीतिक दल जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाया। इस विभाजन से इनेलो की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो गई और 2019 के चुनावों में वे केवल एक सीट जीत सके। 2024 में थोड़े सुधार के बाद भी वे केवल दो सीटों पर ही सफलता हासिल कर पाए।
राजनीति के केंद्र में रहते हुए, ओपी चौटाला का नाम कई निर्वाचन क्षेत्रों से जुड़ा रहा। वे एलेनाबाद, नरवाना, उचाना, दरबा कलां, और रोरी से विधायक रहे। उनके छोटे भाई प्रताप और रंजीत चौटाला भी विधायक रहे। परिवार में अन्य सदस्य, जैसे कि जगदीश के पुत्र, आदित्य देवीलाल इनेलो के मौजूदा विधायक हैं। चौटाला के बेटे अभय और अजय और उनके पौत्र भी राजनीति में सक्रीय हैं।
ओम प्रकाश चौटाला की विरासत
ओम प्रकाश चौटाला ने राजनीति में ऐसी विदाई ली, जिसे याद किया जाएगा। उनका जीवन एक प्रेरक सफर रहा है। राजनीति के जिस मंच पर अक्सर ढेर सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वे वहां अपने साहस और बुद्धिमानी के लिए जाने जाते रहे हैं। चाहे उनकी छवि विवादित रही हो या ना रही हो, उनका योगदान और उनके द्वारा शुरू किए गए योजनाओं ने हरियाणा की राजनीति को गहरे प्रभावित किया है।