के द्वारा प्रकाशित किया गया Vivek Bandhopadhyay    पर 22 जुल॰ 2024    टिप्पणि (0)

श्रावण सोमवार व्रत: कथा, पूजा विधि और महत्व

श्रावण सोमवार व्रत का महत्व

श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। श्रवण मास, जो कि 'सावन' के नाम से भी जाना जाता है, पूरे मास भगवान शिव की उपासना के लिए समर्पित होता है। इस अवसर पर शिवलिंग का अभिषेक, बेलपत्र अर्पण और विभिन्न प्रकार की पूजा विधियों का आयोजन किया जाता है।

कलैण्डर के मुताबिक इस वर्ष यह व्रत 22 जुलाई 2024 से प्रारंभ हो रहा है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से यह व्रत उन दंपत्तियों के लिए फलदायी माना जाता है जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं।

श्रावण सोमवार व्रत की कथा

श्रावण सोमवार व्रत की कथा एक धनवान साहूकार की कहानी है, जिसकी कोई संतान नहीं थी। भगवान शिव की आराधना के बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई, परंतु उसे यह भी बताया गया कि वह पुत्र केवल बारह वर्षों तक ही जीवित रहेगा।

उस साहूकार के पुत्र ने बड़ा होकर काशी यात्रा का संकल्प लिया। मार्ग में उसकी भेंट एक व्यापारी की पुत्री से हुई और दोनों ने विवाह कर लिया। बारह वर्ष की आयु में वह पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुआ।

उसकी पत्नी ने श्रावण सोमवार का व्रत रखा और भगवान शिव से अपनी प्रार्थना की। भगवान शिव की कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो उठता है। तभी से यह व्रत स्त्रियों और पुरुषों द्वारा संतान, धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाने लगा।

पूजा विधि

श्रावण सोमवार व्रत का पालन करने के लिए श्रद्धालुओं को विशेष पूजा विधि का पालन करना पड़ता है। सबसे पहले सुबह स्नान करने के पश्चात गंगाजल का छिड़काव किया जाता है। इसके बाद भगवान शिव की मूर्ति या चित्र को पंचामृत से स्नान कराया जाता है।

फिर उस पर चंदन का लेप लगाया जाता है और बेलपत्र, धतूरा, आक और फूल अर्पित किए जाते हैं। पूजन के दौरान 'ॐ नमः शिवाय' या महामृत्युंजय मंत्र की 108 बार जाप करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान शिव की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।

श्रावण मास

श्रावण मास पूरे महीने भगवान शिव की उपासना का समय होता है। इस महीने में कई भक्त सोमवार व्रत रखते हैं और इस दौरान वे सात्विक भोजन करते हैं। सोमवार को विशेष रूप से उपवास रखने की परंपरा है, जिसमें फलाहार या केवल एक समय भोजन करने का व्रत लिया जाता है।

इस व्रत के दौरान शिवालयों में विशेष आराधना होती है और भोर से ही भक्त शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का अभिषेक करते हैं। विशेष पूजा के लिए कुछ भक्त काशी, उज्जैन और हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थानों पर भी जाते हैं।

यह व्रत न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रावण सोमवार व्रत का पालन करने से मानसिक शांति और आत्मबल में वृद्धि होती है। भगवान शिव की कृपा से भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

व्रत की विधि

श्रावण सोमवार का व्रत रखने के लिए भक्तों को प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को स्वच्छ करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। पंचामृत से अभिषेक करने के पश्चात चन्दन, अक्षत, पुष्प, फल और बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं।

ध्यान रखना चाहिए कि शिवलिंग पर कभी भी तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए, क्योंकि यह भगवान शिव और माता पार्वती दोनों के प्रति अपवित्र माना गया है। इस व्रत के दौरान ब्रतियों को खास धैर्य और संयम का परिचय देना चाहिए और सात्विक जीवन जीने का संकल्प लेना चाहिए।

श्रावण सोमवार व्रत में भगवान शिव की कथा सुनी जाती है और दिनभर 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप किया जाता है। रात्रि में भगवान शिव की आरती के बाद व्रत खोला जाता है और प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस व्रत का पालन 16 सोमवार तक किया जाता है, जिसे 'सोलह सोमवार व्रत' भी कहा जाता है।

व्रत के लाभ

श्रावण सोमवार व्रत का पालन करने से भक्तों को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के पालन से भगवान शिव की कृपा से सभी दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

महिलाएं इस व्रत का पालन अपने पति की लंबी आयु और परिवार के कल्याण के लिए करती हैं। वहीं, पुरुष इस व्रत के माध्यम से संतान प्राप्ति, व्यापार में उन्नति और समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए करते हैं।

श्रावण सोमवार व्रत को अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे भगवान शिव के द्वार पहुंचने का अवसर मिलता है।

अंतिम शब्द

श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए एक अद्भुत अवसर है। यह व्रत न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक भी है। भाव से किया गया यह व्रत निश्चित ही जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाता है।

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