भारत निर्वाचन आयोग (चुनाव आयोग) ने तमलुक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ 'अनुचित, गैर-विवेकपूर्ण, अमर्यादित' टिप्पणी करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश गंगोपाध्याय ने 15 मई को हल्दिया में एक जनसभा में ये टिप्पणी की थी, जिससे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आलोचना की। चुनाव आयोग ने इस टिप्पणी को 'हर मायने में गरिमा से परे, बुरे स्वाद में' और आदर्श आचार संहिता का प्रथम दृष्टया उल्लंघन करार दिया है।
टीएमसी ने चुनाव आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गंगोपाध्याय की टिप्पणी 'लैंगिक भेदभाव' वाली थी और उनका व्यवहार 'स्त्री-विरोधी' था। पार्टी ने गंगोपाध्याय के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई और उन्हें सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
चुनाव आयोग ने गंगोपाध्याय से 20 मई शाम 5 बजे तक जवाब मांगा है। तमलुक सीट पर मतदान 2024 के लोकसभा चुनावों के छठे चरण में 25 मई को होगा, जबकि मतगणना 4 जून को होगी।
गंगोपाध्याय के विवादित बयान पर तृणमूल कांग्रेस ने जमकर हमला बोला है। पार्टी नेताओं ने कहा कि भाजपा उम्मीदवार द्वारा मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर काबिज व्यक्ति के लिए इस तरह की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करना अक्षम्य है।
टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "यह भाजपा की असली चेहरा है। वे महिलाओं का सम्मान नहीं करते और उनके खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। चुनाव आयोग को गंगोपाध्याय पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।"
गंगोपाध्याय ने दिया स्पष्टीकरण
वहीं, अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने जानबूझकर ममता बनर्जी का अपमान करने की कोशिश नहीं की थी। उन्होंने दावा किया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
गंगोपाध्याय ने कहा, "मैंने मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ भी अपमानजनक नहीं कहा। मेरे शब्दों का गलत अर्थ निकाला जा रहा है। मैं एक पूर्व न्यायाधीश हूं और संविधान में मेरी पूरी आस्था है। मैं किसी भी संवैधानिक पद का अपमान नहीं कर सकता।"
उन्होंने आगे कहा, "मेरा मानना है कि राजनीतिक बहस को एक सीमा में रहना चाहिए। चुनावी माहौल में कभी-कभी भावनाएं उफान पर होती हैं और अनजाने में कुछ अनुचित शब्द निकल जाते हैं। लेकिन मेरा इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर मेरी वजह से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं उसके लिए खेद प्रकट करता हूं।"
क्या है आगे की राह?
अब देखना यह होगा कि गंगोपाध्याय के स्पष्टीकरण से चुनाव आयोग संतुष्ट होता है या नहीं। आयोग यदि उनके जवाब से सहमत नहीं होता है तो उन पर कार्रवाई हो सकती है। हालांकि, चुनाव के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर आयोग किसी कड़े फैसले से परहेज कर सकता है।
दूसरी तरफ, तृणमूल कांग्रेस लगातार इस मुद्दे को उठाती रहेगी और भाजपा को घेरने की कोशिश करेगी। पार्टी गंगोपाध्याय के खिलाफ सार्वजनिक माहौल बनाने की रणनीति पर काम कर सकती है ताकि उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे बयानों का चुनाव पर खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि मतदाता अपने-अपने मुद्दों के आधार पर वोट करते हैं। फिर भी, इससे भाजपा की छवि को धक्का जरूर लग सकता है। पार्टी को अपने नेताओं पर लगाम लगाने की जरूरत है ताकि वे संयम के साथ बोलें और किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं।
अभिजीत गंगोपाध्याय को लेकर उठा यह विवाद एक बार फिर से इस बात को रेखांकित करता है कि चुनावी राजनीति में शब्दों के चयन का कितना महत्व होता है। नेताओं को सार्वजनिक मंच से बोलते समय हर शब्द का ध्यान रखना चाहिए ताकि अनावश्यक विवाद पैदा न हों। आदर्श आचार संहिता का पालन सभी दलों और उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य है।
आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में तमलुक सीट समेत कई अन्य सीटों पर रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। देखना होगा कि क्या भाजपा अपने प्रदर्शन में सुधार कर पाती है या फिर एक बार फिर ममता बनर्जी का जादू चलता है। चुनाव के नतीजे किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।

Vishwas Chaudhary
मई 17, 2024 AT 19:35भाजपा के इस तरह के बयान से हमारी राष्ट्रीय भावना धूमिल होती है
Rahul kumar
मई 18, 2024 AT 23:22मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि इस तरह की टिप्पणी को 'अनुचित' कहा जाए। यह सिर्फ राजनीतिक रंगजाल है, जिसके पीछे सच्चाई छिपी है। भाजपा के उम्मीदवार ने शायद अपनी बात व्यक्त करने में थोडी अधिक तीव्रता दिखा दी। वैसे भी, चुनावी माहौल में बहस कभी-कभी गर्म हो जाती है।
indra adhi teknik
मई 20, 2024 AT 03:09चुनाव आयोग की इस कार्रवाई को समझना जरूरी है, क्योंकि यह आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकता है। साथ ही, उम्मीदवार को अपने शब्दों के प्रभाव पर विचार करने की जरूरत है।
Kishan Kishan
मई 21, 2024 AT 06:55वास्तव में, यह देखना दिलचस्प है, कि कैसे एक पूर्व न्यायाधीश, जो संविधान के प्रति अपनी आस्था का दावा करता है, ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है, जो बिल्कुल भी सम्मानजनक नहीं हैं! क्या हमें अब भी उम्मीद है कि राजनीति में शिष्टाचार रहेगा, या फिर यह बिल्कुल भी नहीं रहेगा? सावधान रहें, क्योंकि ऐसे बयान अक्सर हमें गुमराह करने का काम करते हैं।
richa dhawan
मई 22, 2024 AT 10:42भाजपा के इस कदम में गहरी साजिश झलकती है। यह केवल एक प्रपंच है, जिसका उद्देश्य ममता बनर्जी को नीचा दिखाना है।
Balaji S
मई 23, 2024 AT 14:29राजनीतिक संवाद में शब्दों का चयन बेहद मायने रखता है। जब एक व्यक्तित्व अपने विचार व्यक्त करता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह जनता की संवेदनाओं को आहत न करे। हालांकि, हर वक्त शब्दों का संज्ञान लेना कठिन हो सकता है, विशेषकर तेज़ी से बढ़ते चुनावी माहौल में। फिर भी, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ जिम्मेदारी भी आती है। इस संतुलन को बनाये रखना हर राजनीतिक खिलाड़ी की ज़िम्मेदारी है।
Alia Singh
मई 24, 2024 AT 18:15चुनाव आयोग ने, अपने नियमानुसार, कारण बताओ नोटिस जारी किया है; यह प्रक्रिया, भारतीय लोकतांत्रिक तंत्र में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करती है। अभिजीत गंगोपाध्याय को, अपने बयान के संदर्भ में, स्पष्ट स्पष्टीकरण प्रदान करने का अवसर दिया गया है, जिससे अनुशासनिक कार्रवाई की दिशा स्पष्ट हो सके।
Purnima Nath
मई 25, 2024 AT 22:02आशा है कि इस मुद्दे को लेकर सब पक्ष मिलकर constructive चर्चा करेंगे। अंततः, यह जनता की इच्छा है जो मायने रखेगी।
Rahuk Kumar
मई 27, 2024 AT 01:49उक्त बहस में शब्दावली का चयन, नीति-निर्माताओं की बौद्धिक स्तर को प्रतिबिंबित करता है।
Deepak Kumar
मई 28, 2024 AT 05:35भाई, इस तरह के कम शब्दों में भी काफी सटीकता है।
Chaitanya Sharma
मई 29, 2024 AT 09:22चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस का महत्व इस बात में निहित है कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वैधता को संरक्षित करता है। न्यायाधीश गंगोपाध्याय के कथन को अनुचित मानना, केवल व्यक्तिगत भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि संस्थागत मर्यादा का प्रश्न है। यदि आयोग को इस मामले में ठोस साक्ष्य मिलते हैं, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई न केवल कर्तव्यपरायण होगी, बल्कि भविष्य में ऐसे उल्लंघनों की रोकथाम में भी सहायक सिद्ध होगी। वहीं, यदि स्पष्टीकरण पर्याप्त नहीं रहा, तो राजनीतिक वर्ग में यह संकेत मिल सकता है कि आचार संहिता के नियमों का पालन केवल औपचारिकता तक सीमित है। भाजपा के उम्मीदवारों को, विशेषकर उन व्यक्तियों को, जो सार्वजनिक मंच पर प्रभावशाली स्थिति में हैं, अपने वक्तव्य की भाषा पर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। समाज में समानता और लैंगिक सम्मान के सिद्धांत, केवल कागज़ी प्रतिबद्धताओं तक सीमित नहीं रह सकते; इन्हें व्यवहार में भी उतारना आवश्यक है। टीएमसी द्वारा उठाए गए प्रश्न, इस बात की ओर इशारा करते हैं कि राजनीति में शब्दों का शक्ति कितनी बड़ी होती है। ऐसी स्थितियों में, न्यायिक समीक्षा का स्वरूप, सत्ता संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ममता बनर्जी की स्थिति, राज्य के सर्वोच्च कार्यकारी पद की है, और उससे जुड़ी शिष्टाचारिक मान्यताएँ, लोकतांत्रिक शिष्टाचार के मूल स्तंभ हैं। हालांकि, चुनावी तनाव की परिस्थितियों में, कभी-कभी इरादे और अभिप्राय के बीच अंतर समझना कठिन हो जाता है। इसलिए, उम्मीदवारों को अपने वक्तव्य में स्पष्टता, सटीकता और संवेदनशीलता को प्राथमिकता देनी चाहिए। संचालनात्मक दिशा-निर्देशों के अनुपालन में, आयोग को भी पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए, जिससे जनता का भरोसा बना रहे। भविष्य के चुनावी अभियानों में, शब्द चयन की सूक्ष्मता, मतदाताओं के मनोभाव को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण कारक बन सकती है। अंततः, लोकतंत्र की शक्ति, उसकी बहुलता और विविध आवाज़ों में निहित है, परन्तु वह तभी सुदृढ़ रह सकता है जब सभी प्रतिभागी नियमों का सम्मान करें। इस संदर्भ में, सभी राजनीतिक दलों को, अपने अंदर कूटनीति और शिष्टाचार को पुनर्स्थापित करने का प्रयत्न करना चाहिए। समग्र रूप से, यदि इस घटना से कोई सकारात्मक सबक निकाला जाता है, तो यह भारतीय राजनीति की परिपक्वता का संकेत होगा।