के द्वारा प्रकाशित किया गया Vivek Bandhopadhyay पर 17 मई 2024 टिप्पणि (0)
भारत निर्वाचन आयोग (चुनाव आयोग) ने तमलुक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ 'अनुचित, गैर-विवेकपूर्ण, अमर्यादित' टिप्पणी करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश गंगोपाध्याय ने 15 मई को हल्दिया में एक जनसभा में ये टिप्पणी की थी, जिससे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आलोचना की। चुनाव आयोग ने इस टिप्पणी को 'हर मायने में गरिमा से परे, बुरे स्वाद में' और आदर्श आचार संहिता का प्रथम दृष्टया उल्लंघन करार दिया है।
टीएमसी ने चुनाव आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गंगोपाध्याय की टिप्पणी 'लैंगिक भेदभाव' वाली थी और उनका व्यवहार 'स्त्री-विरोधी' था। पार्टी ने गंगोपाध्याय के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई और उन्हें सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
चुनाव आयोग ने गंगोपाध्याय से 20 मई शाम 5 बजे तक जवाब मांगा है। तमलुक सीट पर मतदान 2024 के लोकसभा चुनावों के छठे चरण में 25 मई को होगा, जबकि मतगणना 4 जून को होगी।
गंगोपाध्याय के विवादित बयान पर तृणमूल कांग्रेस ने जमकर हमला बोला है। पार्टी नेताओं ने कहा कि भाजपा उम्मीदवार द्वारा मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर काबिज व्यक्ति के लिए इस तरह की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करना अक्षम्य है।
टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "यह भाजपा की असली चेहरा है। वे महिलाओं का सम्मान नहीं करते और उनके खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। चुनाव आयोग को गंगोपाध्याय पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।"
गंगोपाध्याय ने दिया स्पष्टीकरण
वहीं, अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने जानबूझकर ममता बनर्जी का अपमान करने की कोशिश नहीं की थी। उन्होंने दावा किया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
गंगोपाध्याय ने कहा, "मैंने मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ भी अपमानजनक नहीं कहा। मेरे शब्दों का गलत अर्थ निकाला जा रहा है। मैं एक पूर्व न्यायाधीश हूं और संविधान में मेरी पूरी आस्था है। मैं किसी भी संवैधानिक पद का अपमान नहीं कर सकता।"
उन्होंने आगे कहा, "मेरा मानना है कि राजनीतिक बहस को एक सीमा में रहना चाहिए। चुनावी माहौल में कभी-कभी भावनाएं उफान पर होती हैं और अनजाने में कुछ अनुचित शब्द निकल जाते हैं। लेकिन मेरा इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर मेरी वजह से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं उसके लिए खेद प्रकट करता हूं।"
क्या है आगे की राह?
अब देखना यह होगा कि गंगोपाध्याय के स्पष्टीकरण से चुनाव आयोग संतुष्ट होता है या नहीं। आयोग यदि उनके जवाब से सहमत नहीं होता है तो उन पर कार्रवाई हो सकती है। हालांकि, चुनाव के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर आयोग किसी कड़े फैसले से परहेज कर सकता है।
दूसरी तरफ, तृणमूल कांग्रेस लगातार इस मुद्दे को उठाती रहेगी और भाजपा को घेरने की कोशिश करेगी। पार्टी गंगोपाध्याय के खिलाफ सार्वजनिक माहौल बनाने की रणनीति पर काम कर सकती है ताकि उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे बयानों का चुनाव पर खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि मतदाता अपने-अपने मुद्दों के आधार पर वोट करते हैं। फिर भी, इससे भाजपा की छवि को धक्का जरूर लग सकता है। पार्टी को अपने नेताओं पर लगाम लगाने की जरूरत है ताकि वे संयम के साथ बोलें और किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं।
अभिजीत गंगोपाध्याय को लेकर उठा यह विवाद एक बार फिर से इस बात को रेखांकित करता है कि चुनावी राजनीति में शब्दों के चयन का कितना महत्व होता है। नेताओं को सार्वजनिक मंच से बोलते समय हर शब्द का ध्यान रखना चाहिए ताकि अनावश्यक विवाद पैदा न हों। आदर्श आचार संहिता का पालन सभी दलों और उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य है।
आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में तमलुक सीट समेत कई अन्य सीटों पर रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। देखना होगा कि क्या भाजपा अपने प्रदर्शन में सुधार कर पाती है या फिर एक बार फिर ममता बनर्जी का जादू चलता है। चुनाव के नतीजे किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।