के द्वारा प्रकाशित किया गया Vivek Bandhopadhyay    पर 29 जून 2024    टिप्पणि (0)

अफ़ग़ानिस्तान की परियों की कहानी: निर्वासन में महिलाओं के संघर्ष को न भूलें

अफ़ग़ानिस्तान की महिला क्रिकेट टीम: संघर्ष और संघर्ष की कहानी

अफ़ग़ानिस्तान महिला क्रिकेट टीम का संघर्ष एक सच्चाई है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस टीम की सदस्य, विशेष रूप से बेनाफ़शा, ने असंख्य चुनौतियों का सामना किया है। बेनाफ़शा ने तुग्गेरानोंग वैली क्रिकेट क्लब में खेलते हुए और 'क्रिकेट विदाउट बॉर्डर्स' के साथ फिजी की यात्रा करते हुए अपने जुनून का प्रदर्शन किया। 2022 में, उनका यही समर्पण उन्हें फिजी ले गया, लेकिन उनकी आवाज़ और मांगों को विश्व क्रिकेट मंच पर समझा नहीं जा सका।

ICC और महिला अधिकार

बेनाफ़शा ने निराशा के साथ बताया कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने उनकी अपीलों की उपेक्षा की। आईसीसी ने दावा किया कि वे महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करते हैं, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के मामले में वे खामोश नज़र आते हैं। यह चिंताजनक है कि अफ़ग़ानिस्तान अब भी एकमात्र पूर्ण सदस्य है जिसकी महिला टीम नहीं है। आईसीसी के नियमों के अनुसार, पूर्ण सदस्यता के लिए महिला टीम का होना आवश्यक है। अगर यह स्थिति नहीं बदलती, तो अफ़ग़ानिस्तान की पुरुष टीम की भी सदस्यता खतरे में पड़ सकती है।

2020: महिला खिलाड़ियों को मिले अनुबंध

2020: महिला खिलाड़ियों को मिले अनुबंध

2020 में, अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने 25 महिला खिलाड़ियों को केंद्रीय अनुबंध दिया। बेनाफ़शा उनमें से एक थीं। एक स्किल और फिटनेस कैंप भी काबुल में आयोजित किया गया। इस कदम ने खिलाड़ियों और उनके परिवारों में आशा की किरण जगाई, लेकिन यह खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिकी।

देश छोड़ने को मजबूर

कम समय के भीतर, अफ़ग़ानिस्तान की महिला क्रिकेटरों को देश छोड़ना पड़ा। सुरक्षा चौकियों से गुजरते हुए, भारी सुरक्षा के बीच, ये खिलाड़ी देश छोड़कर कहीं और नई ज़िंदगी की तलाश में निकल पड़ीं। उनके पास अपने देश के लिए खेलने की उम्मीद ना के बराबर रह गई।

ऑस्ट्रेलिया के जस्टिन लैंगर का अनुभव

ऑस्ट्रेलिया के जस्टिन लैंगर का अनुभव

पूर्व ऑस्ट्रेलिया क्रिकेटर जस्टिन लैंगर ने एक चैरिटी डिनर में बेनाफ़शा, उनकी बहन सफिया, और उनकी टीममेट नीलाब स्तानिकज़ाई से मुलाकात की। लैंगर ने उस समय की कठोर वास्तविकता को बयान किया जब उन्होंने अफ़ग़ान महिलाओं के संघर्षों की तुलना ऑस्ट्रेलियाई महिलाओं की आज़ादी से की। लैंगर की नज़र में, यह एक दर्दनाक अंतर था जो दुनिया के अन्य हिस्सों में लोगों को कभी समझ नहीं आएगा।

भविष्य की अनिश्चितता

भविष्य की अनिश्चितता

बेनाफ़शा की निराशा सजीव रूप में नज़र आई जब उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि 2050 तक भी कुछ बदलेगा या नहीं। अफ़ग़ानिस्तान की महिला क्रिकेटरों का यह संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक बड़े सवाल के रूप में है। इन बड़ी चुनौतियों के बावजूद भी, इन महिलाओं की हिम्मत और खेल के प्रति समर्पण किसी प्रेरणा से कम नहीं है।

अफ़ग़ानिस्तान की महिला क्रिकेट टीम का यह संघर्ष हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि खेल में समानता की बात करते समय हमें वास्तव में कितनी दूर जाना है। बेनाफ़शा और उनकी टीम की तरह न जाने कितनी महिलाएं हैं जो अपने सपनों के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह महत्वपूर्ण है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय उनके संघर्ष को समझे और उनकी आवाज़ को सुनने का प्रयास करे।

एक टिप्पणी लिखें